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Thursday, 31 August 2023

यशोधरा


 यशोधरा 

            
प्रिये तुम सोते छोड़ गये।
आँख खुली तो सेज सूने 
सुने थी महलों के कोने। 
शेष रह गयी मैं यहाँ जीने। 

              नयनों से निर्झर बह निकले 
              पाकर खुद को यहाँ अकेले। 
              ये कैसा विश्वास छला था
              मेरा जीवन व्यर्थ हो चला था। 

तुझ संग ही बांधी थी 
मैं अपने जीवन की डोर। 
निकल गए तुम मेरे 
सारे सपनों को यूं तोड़। 

 बुद्ध बन तुम दुनिया को जीते 
 पर मेरे मन को समझ न पाए।
 मेरी मर्यादा तुम बचा न पाए।

मैं नहीं बनती पांवो की बेड़ी 
मैं नहीं होती राहों के रोड़े। 
मैं भी बुझाती ज्ञान पिपासा 
मैं भी साथ तेरे चल देती।

क्या तेरा कोई कर्तव्य् नहीं था
छोड़ पत्नी को तुम चल चूका था।
ये कैसा तेरा जीवन मोक्ष
दे गए मुझे जीवन भर का क्षोभ।

माफ़ तुझे न कर पाऊंगी 
ये कलंक इतिहास लिखेगा। 
तेरे नाम के साथ ही हमेशा 
मेरा भी अब नाम जुड़ेगा।


         रंजना वर्मा 
         आशियाना नगर, पटना       

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