पिता
माँ धरा तो आकाश है पिता
व्योम-धरा पर संसार है पिता ।
नभ से भी ऊँचा प्यार है तेरा
सागर सा गंभीर मुस्कान है तेरा ।
माँ ने दिया यहाँ जनम हमें
तुमने सिखाई जीने की कला
जीवन ऊर्जा हम तुमसे पाते
हर मुश्किल में मार्ग दिखाते।
दुःख की साया पड़े न हम पर
तुम नीलकंठ बन दुःख पी जाते ।
अपनी शांत ओज आवाजों से
नियंत्रित करते जीवन तुम ।
जीवन की इस आपाधापी में
अडिग रहते हिमालय सा तुम ।
मेरे जीवन के ड़ोर हो तुम
खुशियों के हर छोर हो तुम ।
Ranjana Verma