मैं कर जोडे
विनती करूँ
लिए अर्घ्य की धार
निर्जला जल में खड़ी
करूँ प्रणाम तुम्हें बारम्बार
हे सूर्यदेव ! जग के प्राणाधार !!
दीर्घायु हो संतान
और झिलमिलाता रहे
मांग का सिंदूर
मांग रही आशीर्वाद
विश्व -शांति का और
भरा रहे अन्न -धन से घर- द्वार
करूँ प्रणाम तुम्हें बारम्बार
हे सूर्यदेव ! जग के प्राणाधार !!
Ranjana Verma
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १५०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है - १५०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !!
Deleteसुन्दर ।
ReplyDeleteDhanyavad
Deleteमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
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