मैं तो हो गई बावरिया ...................
हरि को ढूंढने मैं चली
छोड़कर अपना घरबार
कहाँ मिलेंगे मेरे हरि
कहाँ मिलेंगे गिरधर गोपाल
घर में ढूंढी-----
बाहर ढूंढी------
ढूंढी मंदिर और मस्जिद में
गिरजाघर में जाकर ढूंढी
मैं तो हो गई बावरिया ...................
प्रभु अपना पता न देते हो
जन्मों तक मुझे भटकाते हो
चौरासी जन्मों तक भटकी आत्मा
पर तेरी थाह न पाई मैंने
हर तीर्थों में तुझे ही ढूंढी
ढूंढी काशी और काबा में
विन्ध्याचल में तुझे ही ढूंढी
ढूंढी पहाड़ों और कंदराओ में
ढूंढ़ते ढूंढ़ते गिर गई मैं
मैं तो हो गई चेतनाशून्य
शून्य में लगा मेरा ध्यान
तब हुआ मेरा --------
सृष्टि से साक्षात्कार
तब मैंने जाना------
मेरे अंदर ही हरि बसे हैं
मुझमें ही गिरधर गोपाल
मैं बाहर क्यों बावरिया
मेरे अंदर सबके अंदर
मंदिर और मस्जिद में
जिस में चाहो------
जिस रूप में चाहो------
हाथ जोड़कर कर लो दर्शन
अपने अंदर मुड़कर कर
लो आत्मदर्शन...................
वे निराकार निर्गुण हैं
ब्रह्मलीन हो जाओ
हरि कहते हैं-----
कर्म क्षेत्र ही जीवन है
जीवनकर्म ही ईश्वरत्व है
पवित्र मन से हर काम करो
निःस्वार्थ सेवा में-----
कुछ समय योगदान करो
यही है हरि पाने का मार्ग...................
यही है मुक्ति का भी मार्ग ...................
(मेरी ओर से आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें )
Ranjana Verma
तजे न लोभ
ReplyDeleteरुद्र मिली उपाधि
गोपीनाथ की
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें
तब मैंने जाना----
ReplyDeleteमेरे अंदर ही हरि बसे हैं
मुझमें ही गिरधर गोपाल
मैं बाहर क्यों बावरिया
..सुंदर....कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें
मेरे मनमोहना....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रंजना जी....आनंद आ गया सखी...!
मेरे ब्लॉग पर आपका बहुत बहुत स्वागत और धन्यवाद !!
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया..कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें !
ReplyDeleteजब दृष्टि पलट गयी अंतर्मन की ओर तो वहां प्रभु ही हैं, बहुत ही सुंदर भाव.
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सुंदर रचना,,,
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
RECENT POST : पाँच( दोहे )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 28/08/2013 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः7 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत बहुत शुक्रिया !!
Deleteबढ़िया।
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति......श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें......
ReplyDeleteराधा हो जाना ही जीवन की सार्थकता है ...
ReplyDeleteलाजवाब अभिव्यक्ति ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई ...
बहुत ही सुन्दर रचना |
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ReplyDeleteकर्म क्षेत्र ही जीवन है
जीवनकर्म ही ईश्वरत्व है
- आज के महाभारत में यही संदेश सार्थक है !
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteअगर हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.
http://dehatrkj.blogspot.in/2013/09/blog-post.html
यह मन ही सुख/दुःख आनंद ..अच्छे बुरे एहसासों का एकमात्र श्रोत हैं |
ReplyDeleteनई पोस्ट-“जिम्मेदारियाँ..................... हैं ! तेरी मेहरबानियाँ....."
hari base harday mee.
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