मुठ्ठी भर आसमां ......................
अपनी जड़ ज़माने के लिए
पनपने के लिए -----
गहराई तक जमने के लिए
किसी बरगद के पेड़ का
सहारा नहीं -------
किसी के एहसानों की
बैसाखी नहीं -------
किसी के आखों की
दया नहीं------
किसी के दुखती दिल की
आह नहीं --------
किसी की खुशियों की
डाह नहीं -------
सिर उठा के जीने के लिए
अपनी अस्तित्व के लिए -----
एक मुठ्ठी जमीं
एक अंजुरी पानी
......................और मुठ्ठी भर आसमां ही तो चाहिए
Ranjana Verma
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सच, बस ज़रा सी ही तो चाहिए जीने को ज़मीन जिसपर झुका हो ज़रा सा आसमान!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के डायरेक्ट दिल से :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteसच कहा है ... अस्तित्व की मजबूती ही आधार होती है ... एक मुट्ठी ही काफी होती है ...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeletesundar kavita
ReplyDeleteGod bless U
ReplyDeleteजमीं आसमां पानी
ReplyDeleteइनसे जिन्दगानी.........सुन्दर।
सिर उठा के जीने के लिए
ReplyDeleteअपनी अस्तित्व के लिए -----
एक मुठ्ठी जमीं
एक अंजुरी पानी
......................और मुठ्ठी भर आसमां ही तो चाहिए
बेहद संजीदा और खूबसूरत रचना.
रामराम.
सच है
ReplyDeleteअपनी जड़ जमाने के लिए , पनपने के लिए
एक मुठ्ठी जमीं , एक अंजुरी पानी
..........और मुठ्ठी भर आसमां ही तो चाहिए !
जीवन से जुड़ी सुन्दर रचना की बधाई !
सुन्दर अभिव्यक्ति .आभार .
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
भारतीय नारी
गहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteसच कहा अपना ही वजूद तलाशना है
ReplyDeleteगहन अभिवयक्ति... सुन्दर रचना
ReplyDeleteबिल्कुल सच ... सिर उठा के जीने के लिए
ReplyDeleteयही जज्बा ऊंचाईयों तक ले जाता है ....
मन के अन्तःपुर में समा जाने वाली रचना । प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबिलकुल सच्ची बात.
ReplyDeleteआज 08/008/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !!
Deleteसुन्दर...बहुत सुन्दर.....एकदम सच्ची अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteअनु
Bilkul sahi!!
ReplyDeleteSachai ke dhratal par aak dum khari kavita hay.
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