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Sunday, 28 July 2013

एक गरीब माँ के सपने..............!!!



इस भयानक रात में
मुसलाधार बरसात में
अपने छोटे बच्चे को कलेजे से लगाये वो
इस भयानक बरसात में कहाँ छुपाये वो
रंग -बिरंगे प्लास्टिको से बनी झोपड़ी 
पानी -पानी हो रहा घर बरसात के होने से
घर में एकमात्र खाट के नीचे वह
अपने बच्चे को लेके लेटे वह
सोचती ये बारिस कब रुकेगी
कब वह दिन आयेगा
जब अपना भी आशियाना होगा
जीवन का तब नया सूरज निकलेगा
खाने को अच्छा खाना होगा

चारों ओर झोपड़े के अंदर
पानी ही पानी बना है समुंदर
सिर्फ खाट के नीचे बची थोड़ी सी जमीन
जहाँ सीने से लगाये बच्चे को कोसती नसीब
भूख से बेहाल बच्चा क्रन्दन कर रहा है
बाहर मेघ भी आज गर्जन कर रहा है
बालक के क्रन्दन से माँ की छाती फट रही है
सूखे शरीर में दूध भी तो नहीं उतर रही है

एक माँ के बेबसी के आँसू
और उसके बच्चे के क्रन्दन से
लगता है सिहर उठी है धरती
चित्कार उठा है आकाशमंडल
आकाश से टपक रही है
आँसू की बड़ी -बड़ी बूंदे

आज माँ और मेघ के आंसू से
डूब जाएगी ये धरती
जलमग्न हो जाएगी  दुनिया
एक माँ के आँसू से बड़ा कोई
हथियार नहीं होता
जागो देश के शासको
सपने इनकी भी सजाओ तुम
नहीं तो ये जलजला तुम्हें भी बहा ले जायेगी
बस रहने को मकान और जीने को
रोटी ही तो मांगी है इसने .
..............क्या इतना भी हक़ इस सरजमीं पर इनका नहीं  ???                                                                                                                           

                                                                        Ranjana Verma 





28 comments:

  1. दुखियारी मां की अपने बच्‍चे के लिए उपजी ममता के माध्‍यम से प्रभावी प्रश्‍न किया है आपने शासकों से......

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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  3. hirdayasparshi,sunder rachna

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  4. रंजना वर्मा जी,
    माँ की ममता का सजीव व भावपुर्ण रचनांकन किया है आपने.

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ५ रुपये मे भरने का तो पता नहीं खाली हो जाता है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया !!

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  6. जागो देश के शासको
    सपने इनकी भी सजाओ तुम
    नहीं तो ये जलजला तुम्हें भी बहा ले जायेगी
    बस रहने को मकान और जीने को
    रोटी ही तो मांगी है इसने .बहुत खूब सटीक अभिव्यक्ति,,,

    RECENT POST: तेरी याद आ गई ...

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  7. शब्द हम जैसे साधारण मन को झंझकोरती है
    नेताओ को तो आनंद पैदा करती है
    लाजबाब अभिव्यक्ति

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  8. व्यथा हर गरीब माँ की , आपने बहुत सटीक वर्णन किया है एक गरीब माँ के दिल का,

    वो पीले सूट वाली लड़की .....

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html

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  9. सुंदर भावपूर्ण रचना

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  10. उफ़……बेहद मर्मिक……गरीबी का दंश……हैट्स ऑफ इसके लिए |

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  11. भावमयी अभिव्यक्ति बधाई

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  12. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  13. बहुत ही मर्मिक रचना..

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  14. देश के शासक तो अपने ही सपने सजाने मे लगे रहते है, हर एक गरीब उनकी नजर मे एक मात्र वोट से ज्यादा कुछ नहीं।
    बहुत खूबसूरत रचना

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  15. सुंदर भावपूर्ण रचना

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  16. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...

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  17. जागो देश के शासको
    सपने इनकी भी सजाओ तुम
    नहीं तो ये जलजला तुम्हें भी बहा ले जायेगी
    बस रहने को मकान और जीने को
    रोटी ही तो मांगी है इसने .bahut hi barikiya hai aapki rachna me ranjana ee ...dusron ke dukh ko mahsus karna bahut badi bat hai ..par prashasak sabhi bahre hain ...

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  18. इस प्रश्न का जवाब तो आसान है अगर तंत्र समझे तो ...
    शब्द कई बार खत्म हो जाते हैं पर ये यंत्रण नहीं ... मजबूरी होती है जो खत्म होने का नाम नहीं लेती ...

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  19. रोटी ही तो मांगी है इसने .
    ..............क्या इतना भी हक़ इस सरजमीं पर इनका नहीं ???

    मार्मिक किंतु सटीक अभिव्यक्ति.

    रामराम.

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  20. जागना तो होगा ...
    सही आवाहन !

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  21. मार्मिक प्रश्न ... जीवन जीने योग्य परिस्थितियां तो सबके हिस्से आयें ....

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  22. एक माँ के बेबसी के आँसू
    और उसके बच्चे के क्रन्दन से
    लगता है सिहर उठी है धरती
    चित्कार उठा है आकाशमंडल
    आकाश से टपक रही है
    आँसू की बड़ी -बड़ी बूंदे
    बिल्‍कुल सच ... गहन भाव लिये अनुपम प्रस्‍तुति

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  23. समानता का अधिकार लेकर पैदा होते हैं सभी... जाने कौन सी विसंगतियां छीन लेतीं हैं ये मूलभूत अधिकार..!

    मार्मिक अभिव्यक्ति...

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  24. सुंदर भावपूर्ण रचना ...

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  25. आप सब बहुत बहुत हर्दिक धन्यवाद !!

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  26. ऐसा त्याग बस माँ ही कर सकती है. सुन्दर रचना.

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