मुसलाधार बरसात में
अपने छोटे बच्चे को कलेजे से लगाये वो
इस भयानक बरसात में कहाँ छुपाये वो
रंग -बिरंगे प्लास्टिको से बनी झोपड़ी
पानी -पानी हो रहा घर बरसात के होने से
घर में एकमात्र खाट के नीचे वह
अपने बच्चे को लेके लेटे वह
सोचती ये बारिस कब रुकेगी
कब वह दिन आयेगा
जब अपना भी आशियाना होगा
जीवन का तब नया सूरज निकलेगा
खाने को अच्छा खाना होगा
चारों ओर झोपड़े के अंदर
पानी ही पानी बना है समुंदर
सिर्फ खाट के नीचे बची थोड़ी सी जमीन
जहाँ सीने से लगाये बच्चे को कोसती नसीब
भूख से बेहाल बच्चा क्रन्दन कर रहा है
बाहर मेघ भी आज गर्जन कर रहा है
बालक के क्रन्दन से माँ की छाती फट रही है
सूखे शरीर में दूध भी तो नहीं उतर रही है
एक माँ के बेबसी के आँसू
और उसके बच्चे के क्रन्दन से
लगता है सिहर उठी है धरती
चित्कार उठा है आकाशमंडल
आकाश से टपक रही है
आँसू की बड़ी -बड़ी बूंदे
आज माँ और मेघ के आंसू से
डूब जाएगी ये धरती
जलमग्न हो जाएगी दुनिया
एक माँ के आँसू से बड़ा कोई
हथियार नहीं होता
जागो देश के शासको
सपने इनकी भी सजाओ तुम
नहीं तो ये जलजला तुम्हें भी बहा ले जायेगी
बस रहने को मकान और जीने को
रोटी ही तो मांगी है इसने .
..............क्या इतना भी हक़ इस सरजमीं पर इनका नहीं ???
दुखियारी मां की अपने बच्चे के लिए उपजी ममता के माध्यम से प्रभावी प्रश्न किया है आपने शासकों से......
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeletehirdayasparshi,sunder rachna
ReplyDeleteरंजना वर्मा जी,
ReplyDeleteमाँ की ममता का सजीव व भावपुर्ण रचनांकन किया है आपने.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ५ रुपये मे भरने का तो पता नहीं खाली हो जाता है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया !!
Deleteजागो देश के शासको
ReplyDeleteसपने इनकी भी सजाओ तुम
नहीं तो ये जलजला तुम्हें भी बहा ले जायेगी
बस रहने को मकान और जीने को
रोटी ही तो मांगी है इसने .बहुत खूब सटीक अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: तेरी याद आ गई ...
शब्द हम जैसे साधारण मन को झंझकोरती है
ReplyDeleteनेताओ को तो आनंद पैदा करती है
लाजबाब अभिव्यक्ति
व्यथा हर गरीब माँ की , आपने बहुत सटीक वर्णन किया है एक गरीब माँ के दिल का,
ReplyDeleteवो पीले सूट वाली लड़की .....
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteउफ़……बेहद मर्मिक……गरीबी का दंश……हैट्स ऑफ इसके लिए |
ReplyDeletethank you...
Deleteभावमयी अभिव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteबहुत ही मर्मिक रचना..
ReplyDeleteदेश के शासक तो अपने ही सपने सजाने मे लगे रहते है, हर एक गरीब उनकी नजर मे एक मात्र वोट से ज्यादा कुछ नहीं।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजागो देश के शासको
ReplyDeleteसपने इनकी भी सजाओ तुम
नहीं तो ये जलजला तुम्हें भी बहा ले जायेगी
बस रहने को मकान और जीने को
रोटी ही तो मांगी है इसने .bahut hi barikiya hai aapki rachna me ranjana ee ...dusron ke dukh ko mahsus karna bahut badi bat hai ..par prashasak sabhi bahre hain ...
इस प्रश्न का जवाब तो आसान है अगर तंत्र समझे तो ...
ReplyDeleteशब्द कई बार खत्म हो जाते हैं पर ये यंत्रण नहीं ... मजबूरी होती है जो खत्म होने का नाम नहीं लेती ...
रोटी ही तो मांगी है इसने .
ReplyDelete..............क्या इतना भी हक़ इस सरजमीं पर इनका नहीं ???
मार्मिक किंतु सटीक अभिव्यक्ति.
रामराम.
जागना तो होगा ...
ReplyDeleteसही आवाहन !
मार्मिक प्रश्न ... जीवन जीने योग्य परिस्थितियां तो सबके हिस्से आयें ....
ReplyDeleteएक माँ के बेबसी के आँसू
ReplyDeleteऔर उसके बच्चे के क्रन्दन से
लगता है सिहर उठी है धरती
चित्कार उठा है आकाशमंडल
आकाश से टपक रही है
आँसू की बड़ी -बड़ी बूंदे
बिल्कुल सच ... गहन भाव लिये अनुपम प्रस्तुति
समानता का अधिकार लेकर पैदा होते हैं सभी... जाने कौन सी विसंगतियां छीन लेतीं हैं ये मूलभूत अधिकार..!
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति...
सुंदर भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteआप सब बहुत बहुत हर्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeleteऐसा त्याग बस माँ ही कर सकती है. सुन्दर रचना.
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