बिन बारिश के मैं भीग रही थी........
बिन शोले के मैं जल रही थी
अनजानी दिशाओं में बढ़ रही थी
मेरी सांसे कुछ बहक रही थी
पास कोई खुशबू सी महक रही थी
मेरा कंगना कुछ खनक रहा था
मेरी बिंदिया चमक रही थी
मेरे लब कुछ बोल रहे थे
मेरी आँखे कुछ खोज रही थी
मेरा आंचल कोई खींच रहा था
पीछे पलटी तो तुम खड़े थे ......…!!
Ranjana verma
वाह बहुत खूब ...खूबसूरत अहसास
ReplyDeletehttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ शुक्रवारीय अंक ४४ दिनांक १५/११/२०१३ में आपकी रचना को शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया !!
Deleteचर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर , छोटी परन्तु सुन्दर शब्दों से अलंकृत कृति , आदरणीय श्री धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन --: प्रश्न ? उत्तर -- भाग - ६
वाह।
ReplyDeleteलघु परन्तु सुन्दर भावों का सृजन , बधाई , शेयर किया कीजिये
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteप्रेम का गहरा एहसास लिए ... भावपूर्ण प्रेम भरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteवाह,बहुत सुन्दर कृति.
ReplyDeleteवाह एक उसके खडे होने के एहसास को आपने कितनी खूबसूरती से शब्दों में पिरो दिया
ReplyDeleteमेरे दिमाग में आज डाउनलोड होते विचार
सुंदर भावों से सजी रचना । बधाई रंजना जी ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
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