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Tuesday, 2 July 2013

महाकाल तुम आज मौन क्यों ..............???

                                                               




          हे भगवन तेरे दरबार में ये क्या हो गया ..................
        कुदरत का ये कैसा करिश्मा दिखला दिया
        गये थे तुमसे वरदान मांगने मौत ने उसे सुला दिया
        हाय रे भगवन तेरे दरवार में ये क्या हो गया  
        तेरे द्वार पर ये कैसा अनर्थ हो गया
        तेरे ही भक्तों का जीवन हर गया 
        बहुत मुद्दत कबूल के बाद तेरा बुलावा आया
        ख़ुशी ख़ुशी तेरे दरवार में शामिल हो गया
        न जान बची न बची रहने को घरवार
        नामों निशान तक मिट कर अनाथ हो गया 
        किस जन्मों की सजा दी तुमने अपने ही भक्तों को
        चारों ओर चीख पुकार मच गया 
        कौन किसके लिए क्या कर पाया
        आँखों के सामने सब जिन्दा बह गया
        ऐसा तेरे क्रोध का जलजला 
        आज तक कभी नहीं देखी थी दुनिया 
        मानें की गलती हमारी भी है 
        हमने नहीं की प्रकृति की रक्षा ठीक से 
        लेकिन ये खता ऐसी तो नहीं 
        जिसकी सजा तूने ऐसी दी 
        हे विश्वरचेता प्राणपिता 
        महाकाल तुम आज  मौन क्यों ............???


                                                                                                           Ranjana Verma 


13 comments:

  1. बिलकुल सही , गलती हमारी है, आगे ऐसा न करने की शिक्षा देती हुई रचना , शुभकामनाये

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  2. आज तक कभी नहीं देखी थी दुनिया
    मानें की गलती हमारी भी है
    हमने नहीं की प्रकृति की रक्षा ठीक से
    लेकिन ये खता ऐसी तो नहीं
    जिसकी सजा तूने ऐसी दी
    ekdam sahi .very nice presentation of feelings .

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  3. शुभप्रभात बहना

    सच में

    सन्न होंगे की ये मुझसे क्या हो गया
    जबाब क्या देंगे
    सामयिक सार्थक अभिव्यक्ति

    हार्दिक शुभकामनायें

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  4. सच में भगवन, आपके रहते हुए ये क्या हो गया ?
    बहुत सुंदर भाव और अच्छी रचना



    TV स्टेशन ब्लाग पर देखें .. जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
    http://tvstationlive.blogspot.in/

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  6. इन्सान की हरकतें देख के महाकाल का रोद्र रूप बहुत कुछ कह रहा है ... उसे सुनना होगा इन्सान को ...

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  7. मौन कहां हैं उन्‍होंने ने तो संकेत दे दिया है कि अभी भी सुधर जाओ। अभी तो केवल इशारा है बात उनकी सुनने लायक हम बचेंगे भी कि नहीं, पता नहीं।

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  8. गहराता प्रश्न

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  9. महाकाल के लिए भी बहुत भारी है ये सवाल.

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  10. शब्द अपने अर्थ से कहीं आगे बढ़ गये हैं

    फुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कराहट पर......Recent पोस्ट... बड़ी बिल्डिंग के बड़े लोग :) पर ज़रूर आईये

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  12. मौन तो वो तब थे जब उनके भक्तों ने प्रकृति के साथ अन्याय बरपा रखा था ... और अति हुई तो रौद्र रूप धारण कर लिया ... संवेदना है मेरी भी जिन्होंने अपने प्राण गंवाएं, परन्तु हमें सबक सीखना ही पड़ेगा .. कि प्राण ले हम मान प्रकृति की रक्षा करके का।
    सुन्दर आह्वान।
    सादर
    मधुरेश

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  13. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..!!!

    फुर्सत मिले तो ज़रूर आईये
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in/

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