हे भगवन तेरे दरबार में ये क्या हो गया ..................
कुदरत का ये कैसा करिश्मा दिखला दिया
गये थे तुमसे वरदान मांगने मौत ने उसे सुला दिया
हाय रे भगवन तेरे दरवार में ये क्या हो गया
तेरे द्वार पर ये कैसा अनर्थ हो गया
तेरे ही भक्तों का जीवन हर गया
बहुत मुद्दत कबूल के बाद तेरा बुलावा आया
ख़ुशी ख़ुशी तेरे दरवार में शामिल हो गया
न जान बची न बची रहने को घरवार
नामों निशान तक मिट कर अनाथ हो गया
किस जन्मों की सजा दी तुमने अपने ही भक्तों को
चारों ओर चीख पुकार मच गया
कौन किसके लिए क्या कर पाया
आँखों के सामने सब जिन्दा बह गया
ऐसा तेरे क्रोध का जलजला
आज तक कभी नहीं देखी थी दुनिया
मानें की गलती हमारी भी है
हमने नहीं की प्रकृति की रक्षा ठीक से
लेकिन ये खता ऐसी तो नहीं
जिसकी सजा तूने ऐसी दी
हे विश्वरचेता प्राणपिता
महाकाल तुम आज मौन क्यों ............???
Ranjana Verma
बिलकुल सही , गलती हमारी है, आगे ऐसा न करने की शिक्षा देती हुई रचना , शुभकामनाये
ReplyDeleteआज तक कभी नहीं देखी थी दुनिया
ReplyDeleteमानें की गलती हमारी भी है
हमने नहीं की प्रकृति की रक्षा ठीक से
लेकिन ये खता ऐसी तो नहीं
जिसकी सजा तूने ऐसी दी
ekdam sahi .very nice presentation of feelings .
शुभप्रभात बहना
ReplyDeleteसच में
सन्न होंगे की ये मुझसे क्या हो गया
जबाब क्या देंगे
सामयिक सार्थक अभिव्यक्ति
हार्दिक शुभकामनायें
सच में भगवन, आपके रहते हुए ये क्या हो गया ?
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव और अच्छी रचना
TV स्टेशन ब्लाग पर देखें .. जलसमाधि दे दो ऐसे मुख्यमंत्री को
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बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteइन्सान की हरकतें देख के महाकाल का रोद्र रूप बहुत कुछ कह रहा है ... उसे सुनना होगा इन्सान को ...
ReplyDeleteमौन कहां हैं उन्होंने ने तो संकेत दे दिया है कि अभी भी सुधर जाओ। अभी तो केवल इशारा है बात उनकी सुनने लायक हम बचेंगे भी कि नहीं, पता नहीं।
ReplyDeleteगहराता प्रश्न
ReplyDeleteमहाकाल के लिए भी बहुत भारी है ये सवाल.
ReplyDeleteशब्द अपने अर्थ से कहीं आगे बढ़ गये हैं
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कराहट पर......Recent पोस्ट... बड़ी बिल्डिंग के बड़े लोग :) पर ज़रूर आईये
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ReplyDeleteमौन तो वो तब थे जब उनके भक्तों ने प्रकृति के साथ अन्याय बरपा रखा था ... और अति हुई तो रौद्र रूप धारण कर लिया ... संवेदना है मेरी भी जिन्होंने अपने प्राण गंवाएं, परन्तु हमें सबक सीखना ही पड़ेगा .. कि प्राण ले हम मान प्रकृति की रक्षा करके का।
ReplyDeleteसुन्दर आह्वान।
सादर
मधुरेश
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..!!!
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो ज़रूर आईये
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