ओ बसंती हवा
कहाँ से आयी
कहाँ चली जा रही तू
क्या लेकर आयी
क्या छोड़े चली जा रही तू
हिमालय से निकलकर
पहाड़ो से उतरकर
पठारों को छुते
समंदर में नहाते
मैदानों से होते
कहाँ चली जा रही तू
तेरे साथ आया
फूलो की खुशुबू भी
दरख्तों
पेड़ पोधे
को सींचते
बही जा रही तू
ओ सुहानी हवा
तेरे स्पर्शो से
खिलखिलाती ये
फूलों के बगीचे
चारों ओर झूमते
ये सरसों के बाग
पेड़ पौधे अनाजों
झूमते चले जा रहें है
कभी प्रबल वेग
तो कभी मंद वेग से
सबको मंत्र मुग्ध किये
चली जा रही तू
वो दीवानी हवा
घटा से मिलने तू
पागलों की तरह
इधर उधर
उद्धव मचाती
बही जा रही तू
जमीं से आगे
क्षितिज के पार
कहाँ चली जा रही तू
ओ तूफानी हवा
हर गाँव शहर देश सीमा
सब को मिलाती
सब के ऊपर से
हडकंप मचाती
जमीं की धुल तू
आसमां में उड़ाती
उग्र वेग से पेड़ पौधे
को जमीं पर गिराती
तेज आंधी बनकर
बही जा रही तू
धूल कण ककड़ पत्थर को
जमीं पे बिछाती
कहाँ चली जा रही तू
ओ जीवनदायिनी हवा
तुमसे ही है हमारा जीवन
तुम पर ही आश्रित हम जीवधारी
प्राणवायु देके चली जा रही तू
कहा से आयी तू
कहाँ चली जा रही तू रंजना वर्मा
कहाँ से आयी
कहाँ चली जा रही तू
क्या लेकर आयी
क्या छोड़े चली जा रही तू
हिमालय से निकलकर
पहाड़ो से उतरकर
पठारों को छुते
समंदर में नहाते
मैदानों से होते
कहाँ चली जा रही तू
तेरे साथ आया
फूलो की खुशुबू भी
दरख्तों
पेड़ पोधे
को सींचते
बही जा रही तू
ओ सुहानी हवा
तेरे स्पर्शो से
खिलखिलाती ये
फूलों के बगीचे
चारों ओर झूमते
ये सरसों के बाग
पेड़ पौधे अनाजों
झूमते चले जा रहें है
कभी प्रबल वेग
तो कभी मंद वेग से
सबको मंत्र मुग्ध किये
चली जा रही तू
वो दीवानी हवा
घटा से मिलने तू
पागलों की तरह
इधर उधर
उद्धव मचाती
बही जा रही तू
जमीं से आगे
क्षितिज के पार
कहाँ चली जा रही तू
ओ तूफानी हवा
हर गाँव शहर देश सीमा
सब को मिलाती
सब के ऊपर से
हडकंप मचाती
जमीं की धुल तू
आसमां में उड़ाती
उग्र वेग से पेड़ पौधे
को जमीं पर गिराती
तेज आंधी बनकर
बही जा रही तू
धूल कण ककड़ पत्थर को
जमीं पे बिछाती
कहाँ चली जा रही तू
ओ जीवनदायिनी हवा
तुमसे ही है हमारा जीवन
तुम पर ही आश्रित हम जीवधारी
प्राणवायु देके चली जा रही तू
कहा से आयी तू
कहाँ चली जा रही तू रंजना वर्मा
बसंती हवा की बात ही कुछ अलग है. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteतुम पर ही आश्रित हम जीवधारी
ReplyDeleteप्राणवायु देके चली जा रही तू
कहा से आयी तू
कहाँ चली जा रही तू बहुत उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST: दीदार होता है,
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-05-2013) के चर्चा मंच 1235 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteमेरे पोस्ट को रविवार साहित्य चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद .
Deleteबस याद आ गया ........ओ बसंती पवन पागल ... न जा रे ...न जा
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
ReplyDeleteसुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
बहुत ही सुन्दर रचना,मन प्रसन्न हो गया.
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteबहुत सुदर
प्रकृति के करीब जमीं आसमां को चूमती रचना बहुत खुबसूरत लाजवाब *****
ReplyDeleteआपको मैंने अपनी रीडिग लिस्ट में शामिल कर लिया है
साझा करने के लिए शुक्रिया.
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