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Saturday, 27 April 2013

......... क्योकिं मैं एक स्त्री हूँ

    
   मैं कांच नहीं जो टूट जाऊँगी 
   मैं लोहा नहीं जो गल जाऊँगी

                          रहती हूँ अपनी ही ख्वाबों में 
                          गढ़ती  हूँ अपनों की दुनिया                                                                                                                   

    नापा न करो मेरी सीमा को  
    परखा न करो मेरी हिम्मत  

                          मैं इस धरा से फलक तक 
                          मैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ 

    मैं बाहर से जितनी नाजुक हूँ 
    मैं भीतर से उतनी शख्त हिस्सा हूँ 

                            मैं हर खिलती कली की मुस्कान हूँ 
                            मैं प्रेम प्यार दुआवों का अरमान हूँ

    मैं उगते हुए सूरज का सवेरा  हूँ
    मैं चमकते तारों का उजाला हूँ 

                             मैं प्रकृति के हर चीज में ढली हूँ  
                             मैं ब्रह्मांड के हर वजूद में  हूँ

                                                                                   रंजना वर्मा


37 comments:

  1. मैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ
    ati sundar

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ..... मुझे साझा करने के लिए धन्यवाद.

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  2. स्त्री का अस्तित्व पूरे ब्रम्हांड में व्यापक मानना उसे सन्मानित करने जैसा है, बहुत बढिया। पर जरूरी है स्त्री को स्त्री माना जाए, उसे बराबरी का अधिकार दें। यह अगर उसे मिलें तो बाकी अपने आप आता है।

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    1. सही बात कही आपने स्त्री को स्त्री ही माना जाय लेकिन बराबर का दर्जा मिले..... धन्यवाद .

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  3. स्त्री की सीमाओं में बांधना मूर्खता है,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद....

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  4. नापा न करो मेरी सीमा को
    परखा न करो मेरी हिम्मत,,

    बहुत उम्दा प्रस्तुति !!! ,
    Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

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    1. आपको बहुत बहुत धन्यवाद....

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  5. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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    1. मेरे पोस्ट को रविवार चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद..

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  6. माता निर्माता भवति, जो निर्माण करता है वह कभी भी कमजोर नहीं हो सकता। सार्थक कवित्त्।

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    1. शुक्रिया... सही कही आपने .

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  7. बहुत सुन्दर बात की आपने , स्त्री होने से ज्यादा खुद को समझना भी बहुत जरुरी है

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ....

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  8. मैं इस धरा से फलक तक
    मैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ -बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ....

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  9. सुंदर भावपूर्ण रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ....

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  10. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ....

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  11. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ....

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  12. मैं उगते हुए सूरज का सवेरा हूँ
    मैं चमकते तारों का उजाला हूँ

    मैं प्रकृति के हर चीज में ढली हूँ
    मैं ब्रह्मांड के हर वजूद में हूँ.

    नारी के बजूद को नकारना नामुमकिन है यद्यपि पुरुष प्रधान समाज को इस स्वीकारना मुश्किल होता है और यही पुरुषों को असहज कर देता जब वह नारी को आगे बढता देखता है.

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    1. बहुत सही कही आपने नारी के वजूद को नकारना नामुमकिन धन्यवाद .

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  13. बहुत सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ......

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  14. मैं इस धरा से फलक तक
    मैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ....
    बहुत उम्दा प्रस्तुति

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  15. अपने आप को पहचानना ओर स्वीकार करना जरूरी है ... आज इसी आत्मविश्वास की जरूरत है ... उम्दा रचना है ...

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    1. बहुत सही कही आपने आत्मविश्वास की जरुरत है धन्यवाद .

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  16. शुभप्रभात
    सच्चाई ब्यान करती
    बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
    हार्दिक शुभकामनायें

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  17. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए आज 27/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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    1. नई पुरानी हलचल.. मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार !!

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  18. बहुत बहुत शुक्रिया !!

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