मैं कांच नहीं जो टूट जाऊँगी
मैं लोहा नहीं जो गल जाऊँगी
रहती हूँ अपनी ही ख्वाबों में
गढ़ती हूँ अपनों की दुनिया
नापा न करो मेरी सीमा को
परखा न करो मेरी हिम्मत
मैं इस धरा से फलक तक
मैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ
मैं बाहर से जितनी नाजुक हूँ
मैं भीतर से उतनी शख्त हिस्सा हूँ
मैं हर खिलती कली की मुस्कान हूँ
मैं प्रेम प्यार दुआवों का अरमान हूँ
मैं उगते हुए सूरज का सवेरा हूँ
मैं चमकते तारों का उजाला हूँ
मैं प्रकृति के हर चीज में ढली हूँ
मैं ब्रह्मांड के हर वजूद में हूँ
रंजना वर्मा
मैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ
ReplyDeleteati sundar
बहुत बहुत धन्यवाद ..... मुझे साझा करने के लिए धन्यवाद.
Deleteस्त्री का अस्तित्व पूरे ब्रम्हांड में व्यापक मानना उसे सन्मानित करने जैसा है, बहुत बढिया। पर जरूरी है स्त्री को स्त्री माना जाए, उसे बराबरी का अधिकार दें। यह अगर उसे मिलें तो बाकी अपने आप आता है।
ReplyDeleteसही बात कही आपने स्त्री को स्त्री ही माना जाय लेकिन बराबर का दर्जा मिले..... धन्यवाद .
Deleteस्त्री की सीमाओं में बांधना मूर्खता है,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद....
Deleteनापा न करो मेरी सीमा को
ReplyDeleteपरखा न करो मेरी हिम्मत,,
बहुत उम्दा प्रस्तुति !!! ,
Recent post: तुम्हारा चेहरा ,
आपको बहुत बहुत धन्यवाद....
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteमेरे पोस्ट को रविवार चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद..
Deleteमाता निर्माता भवति, जो निर्माण करता है वह कभी भी कमजोर नहीं हो सकता। सार्थक कवित्त्।
ReplyDeleteशुक्रिया... सही कही आपने .
Deleteबहुत सुन्दर बात की आपने , स्त्री होने से ज्यादा खुद को समझना भी बहुत जरुरी है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ....
Deleteमैं इस धरा से फलक तक
ReplyDeleteमैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ -बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
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बहुत बहुत धन्यवाद ....
Deleteसुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ....
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
बहुत बहुत धन्यवाद ....
Deleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ....
Deleteमैं उगते हुए सूरज का सवेरा हूँ
ReplyDeleteमैं चमकते तारों का उजाला हूँ
मैं प्रकृति के हर चीज में ढली हूँ
मैं ब्रह्मांड के हर वजूद में हूँ.
नारी के बजूद को नकारना नामुमकिन है यद्यपि पुरुष प्रधान समाज को इस स्वीकारना मुश्किल होता है और यही पुरुषों को असहज कर देता जब वह नारी को आगे बढता देखता है.
बहुत सही कही आपने नारी के वजूद को नकारना नामुमकिन धन्यवाद .
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ......
Deleteमैं इस धरा से फलक तक
ReplyDeleteमैं अन्तरिक्ष तक विस्तार हूँ....
बहुत उम्दा प्रस्तुति
अपने आप को पहचानना ओर स्वीकार करना जरूरी है ... आज इसी आत्मविश्वास की जरूरत है ... उम्दा रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सही कही आपने आत्मविश्वास की जरुरत है धन्यवाद .
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ReplyDelete.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई . . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
शुभप्रभात
ReplyDeleteसच्चाई ब्यान करती
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
हार्दिक शुभकामनायें
बहुत बहुत आभार !!
Deleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज 27/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!
नई पुरानी हलचल.. मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार !!
Deleteसुंदर व मर्मसपर्शी रचना...
ReplyDeleteकुलदीप ठाकुर...जय हिंद जय भारत
बहुत बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर..
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